गुरुवार, 15 नवंबर 2018

कविता : मन की बात

" मन की बात "

चलते चलते कहीं खो न जाऊँ,
भटकते - भटकते कहीं सो जाऊँ | 
इस ज़माने  का एक अलग दस्तूर है,
तुम्हें याद करके भुला न पाऊँ |
जब मैं ये सोचता हूँ रातों में,
 अकेले खो जाता हूँ बातों में | 
ऐसी गहरी - गहरी रातों में,
कहीं मैं डूब न जाऊँ | 
 लोग मुझे कहते हैं पागल सा,
 सुनता रहता हूँ इस दुनियाँ की बातें | 
मैंने तो समझा लिया अपने मन को,
लेकिन इस दिल की धड़कन को
मैं रोक न पाऊँ | 

नाम :  विशाल कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता विशाल कुमार की है जो उत्तर प्रदेश के निवासी हैं और अपना घर रहकर अपनी पढ़ाई  कर रहे हैं | विशाल को कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है और कुछ अद्भुद से कार्य करना बहुत पसंद है | पढ़लिखकर एक रेलवे इंजीनियर बनना चाहते हैं | 


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