बुधवार, 19 सितंबर 2018

कविता : हंस लो हसने वालों

" हंस लो हसने वालों,"

हंस लो हसने वालों, 
करो घृणा करने वालों | 
पर दिल का दुःख नहीं,
समझ पाओगे पैसा वालों | 
दुःख की धरा को लेकर मैं निडर रहता हूँ, 
जुल्म करो या सितम 
इस मिटटी की शरीर को लिए रहता हूँ | 
कब तक हुक्म चलाओगे,
समाज को बेवकूफ बनाओगे | 
चारो तरफ है पैसा का धंधा, 
पैसे के लालच में लोग है अँधा | 
जरूर उठेगा कभी अच्छा,
कानून भारत का डंडा | 

कवि : विक्रम कुमार , कक्षा :8 , अपना घर 


कवि परिचय : यह है विक्रम जो की बिहार के रहने वाले हैं और अभी अपना घर में रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं | विक्रम को समाज से जुडी बुराइयों को ख़त्म करने के लिए उससे जुडी कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है | 

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