शनिवार, 16 जून 2018

कविता : बच्चे की राह

" बच्चे की राह " 

चलना चाहता हूँ सावधानी से, 
हूँ मैं एक छोटा सा बच्चा | 
आप के साथ खड़ा रहना चाहता हूँ,
क्योंकि डर है मुझे लगता | 
चलते - चलते इन समय में, 
कहीं टहल न जाऊँ |  
भटकने का जोखिम है, 
कहीं रास्ता न भूल जाऊँ | 
गर्मी की सूरज ,सर्दी की बर्फ,
वर्षों के लिए भटक रहा है | 
शायद मुझे अपनी मंजिल मिल जाए, 
मैं भी औरों की तरह खुश हो जाऊँ | 
चलना चाहता हूँ सावधानी से,
हूँ मैं एक छोटा सा बच्चा | 
भटकने का जोखिम है, 
कहीं रास्ता न भूल जाऊँ | 

कवि : सनी कुमार , कक्षा : 7th , अपना घर 

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