रविवार, 10 जून 2018

कविता : दुनियाँ

" दुनियाँ "

ये दुनियाँ रहे या न रहे, 
ये कोई नहीं है जानता | 
दुनियाँ को बिगाड़ रहे, 
पर कोई नहीं है मानता | 
दुनियाँ को बनाने वाले चले गए,
दुनियाँ को मिटाने वाले चले आए | 
ढूढ़ने निकले हैं नई दुनिया,
पर अभी नहीं मिली दुनियाँ | 

कवि : नितीश कुमार , कक्षा :8th , अपना घर 



कवि परिचय : यह हैं नितीश कुमार जो की बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं | नितीश को टेक्नोलॉजी में बहुत रूचि हैं | नितीश कवितायेँ भी बहुत अच्छी लिखते हैं | नितीश को चेस खेलना बहुत पसंद है | 

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (11-06-2018) को "रखना कभी न खोट" (चर्चा अंक-2998) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ८ जून को मनाया गया समुद्र दिवस “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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