सोमवार, 15 मई 2017

कविता : चाह है दुनियां घूमूं

 "चाह है दुनियां घूमूं "

चाह है मेरी दुनियां घूमूं ,
 हर जगह मस्ती में झूमूँ | 
देखूं मैं नई किरणों का शहर, 
जहाँ न हो दुश्मनों का कहर | 
पद यात्रा से हवाई यात्रा करूँ,
आसमान में जाकर साँसें भरूँ |  
जहाँ - जहाँ भी जाऊँ मैं,
सारे संस्कृति को अपनाऊं मैं | 
ठंडी गर्मी और झेलूं बरसाते, 
घूमूं दिनभर और सारी रातें | 
जहां भी जाऊँ ख़ुशी से झूमूँगा, 
जिंदगी एक है खुल के जीऊंगा | 

कवि : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 8th ,अपनाघर

कवि का परिचय : छत्तीसगढ़ के रहने वाले ये हैं  प्रांजुल | अपनाघर का सदस्य है | इनको कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है | अपनी हर एक कविता को मन से लिखते है | खेलने का भी शौक है | इनके परिवार वाले मजदूरी का कार्य करते है | अपनाघर में रह कर ये अपनी शिक्षा को और भी मजबूत बना रहे है | हमें उम्मीद है कि इनकी कविता जरूर सबको पसंद आएगी | 

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