बुधवार, 10 मई 2017

कविता: पृथ्वी का सहारा

"पृथ्वी का सहारा"

सुन्दर सा संसार हमारा,
लगता है सबसे प्यारा | 
इसको बचा कर  रखना यारा, 
यही मनोकामना है हमारा |  
पानी में भी ढूँढा यारा,
फिर भी न मिला सहारा | 
ढूंढ डाला हमने जग सारा,
फिर मिला पृथ्वी का सहारा |  
ढूंढना बंद हुआ तब हमारा,
जब मिल गया पृथ्वी का सहारा |   

कवि : समीर कुमार , कक्षा : 7th ,अपनाघर 


कवि परिचय : इस कवि का नाम  समीर  है | मन से बिलकुल चंचल और दिल से बिलकुल साफ किस्म के इंसान है | इनको गाना  गाने का बहुत शौक है और अपने गाने को अपने अंदाज़ में लिखते है | क्रिकेट के बहुत बड़े प्रेमी  है |  ये गाना  बहुत अच्छा गाते हैं | इलहाबाद के रहने वाले समीर अपनी पढ़ाई अपनाघर में रह शिक्षा ग्रहण कर रहे है | इनके माता पिता ईंट भठ्ठे में ईंट निकलने का काम करते है | हमें उम्मीद है की अपनी कविताओं के जरिये हम सभी को प्रेरित करते रहेंगे | 

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