शनिवार, 6 मई 2017

कविता : डर

"डर" 

दुनियाँ से परे लोगों से डरे,
रहता हूँ मैं पैरों पे खड़े | 
डर कर जीना मैंने तो सीखा,
पर वही था सबसे बुरा तरीका |   
लोग कहते है की खुल कर जीना चाहिए,
पर कोई नहीं बताता  कब जीना चाहिए | 
जो डरके जी रहे हैं,
वो लोग नहीं बुरे हैं | 
दुनियां से परे लोगों से डरे,
रहता हूँ मैं पैरों पे खड़े | 

कवि :देवराज , कक्षा : 7th अपनाघर 

कवि परिचय : यह हैं देवराज कुमार | ये बिहार राज्य के प्रवासी मजदूर का बेटा है | अपनी पढाई पूरी करने के लिए अपना घर हॉस्टल में रहते है | इनको कविता लिखने का बहुत शौक है | इन्होने अभी तक बहुत सी अचरज भरी कवितायेँ लिख चुके हैं | कक्षा 7th के छात्र हैं | देवराज क्रिकेट के दीवाने है | विराट कोहली के फैन है | देवरज को डांस करना बहुत पसंद है| हमें उम्मीद है कि आपको देवराज की रचनाएँ पसंद आएँगी 

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