मंगलवार, 7 मार्च 2017

कविता: चाँद के उस पार

"चाँद के उस पार"

ये कहानी ही है बड़ी अजीब,
मेरे नहीं है कुछ भी नसीब .
हर चीज में मेरी आती है रुकावट,
मैं भरता हूँ हर हौसलों से आहट .
दुनियाँ है मेरी उस चाँद के पार,
फिर मैं क्या कर रहा हूँ इस पार .
मै कोशिश करता हूँ हर बार,
पहुँच जाऊ चाँद के उस पार .
कई बार लगता पहुँच गया हूँ पास,
पर चाँद बहुत दूर हो जाता हर बार.
क्या करूं नसीब ही नहीं मेरा कुछ पाने को,
पर मैं कोशिश करूँगा मंजिल तक जाने को.

कवि: देवराज "डीवी' , कक्षा 6th, कानपुर

कवि का परिचय: देवराज "अपना घर" परिवार के सदस्य है। ये बिहार के रहने वाले है। इनका परिवार ईट भठ्ठों में प्रवासी मजदूर का कार्य करते है. देवराज यंहा "आशा ट्रस्ट" के कानपुर केंद्र "अपना घर" में रहकर, शिक्षा ग्रहण कर रहे है। वर्तमान में ये कक्षा 6th के छात्र है। देवराज को कवितायेँ लिखना अच्छा लगता है। क्रिकेट के दीवाने है, ए वी डिविलयर्स इनके आदर्श है। देवराज को डांस करना बहुत पसंद है। हमें उम्मीद है कि आपको इनकी ये नवीन रचना पसंद आएगी।
 
 
 

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