सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

कविता: मेरी चाह


"मेरी चाह"

मेरी  हर चाह एक ऐसा हो,
दुनिया में हर एक जैसा हो । 
हर  गरीब की एक छाया हो ,
जहाँ में बंधु और भाईचारा हो ।
कंही दुःख का कोई नाम न हो,
खुशियों से भरा हर शाम हो । 
दुनियां में हर किसी का नाम हो ,
जिंदगी में हर कोई महान हो ।
                                                                                         कवि: विक्रम कुमार, कक्षा 6th, अपना घर, कानपुर

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