मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

कविता: वक्त

"वक्त"

अत्याचार का है अब राज,
वक्त कह रहा है ये आज..
महक नहीं आज की इन मिट्टियों में,
वो बात नहीं है आज की चिठ्ठियों में..
कल जो गुजर गई रात,
कोई तो थी उसमें बात..
आज लड़ रहा है हिन्दुतान,
कल मिट रहा है हिंदुस्तान..
जिन्दगी को ढूढ़ रहा है,
मिट रहा है मर रहा है..
उम्मीद की रोशनी में,
घने अंधेरों से लड़ रहा है ..
प्रान्जुल कुमार, कक्षा 5th 
अपना घर, कानपूर

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