शनिवार, 10 नवंबर 2012

शीर्षक : समय

 " समय"

उस समय की बात है ।
जब वक्त था सोने का ।।
सूनसान हो गया था ,सारा महौल ।
मन  तो चंचल  होता ही है ।।
कुछ करने को जी करता है ।
किसी तरह से मन को रोक पाया ।।
तब उसको कुछ अच्छा करने को भाया ।
लिया कलम कापी का सहारा ।।
उनके आगे भी वह हारा ।
धोखा दे दिया पेन ने उसका ।।
इतने मे वह बड़े जोर से बमका ।
गलत नहीं थी पेन की कोई ।।
सर्दी से इंक थी उसकी जम  गई ।
तब तक सब जाग गए थे उसके शोर से ।।
बूढ़े ,बच्चे ,युवा सभी चिड़िया के शोर से ।
 नाम : सागर कुमार , कक्षा: 9, अपना घर ,कानपुर

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