शनिवार, 7 जनवरी 2012

कविता - हुए हम सफल

कविता - हुए हम सफल 
 दर- दर की ठोकरे खाकर ,
 हम हुए घर से बेघर .....
 न मिली हमें  कोई मंजिल,
 हमेशा होते गए विफल .....
 जो सोचा वह हुआ नहीं ,
 जो न सोचा वही हुआ .....
 जिसे पाना चाहा वह न मिला,
 जिसे न चाहा वही मिला .....
 जिस रास्ते से गया पाये कांटे ही कांटे,
 जितने भी दुःख मिले किसी ने न बांटे ......
 दुःख के गमों को सहकर मिली एक पहल ,
 जिस पहल से हुए हम सफल ........
लेखक - आशीष कुमार 
 कक्षा - 9 अपना घर , कानपुर

3 टिप्‍पणियां:

  1. Bacchon ki kavitaein sunkar bahut accha lagta hai....... humein bahut garv hai ki aise pyare bacchon ke saath kuch samay bitane ko mila.....
    Ruchi didi

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  2. बहुत बढिया.
    कृपया जारी रखें.

    और पोस्ट करते रहें.

    अयंगर.9425279174,
    कोरबा, छत्तीसगढ़.

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