काम की तलाश में
मैं रोज सुबह उठता हूँ
काम की तलाश में जाता हूँ
काम मिला तो कर लिया
नहीं तो वापस आ गया
घर में यूँ ही बैठकर
कुछ काम करने के लिए सोचता हूँ
अगर काम मिल जाता हैं तो उसे करता हूँ
रोज मेहनत करता हूँ
आखिर इतनी मेहनत क्यों करता हूँ
शुरू से लेकर आखिरी तक मेहनत करता हूँ
बिना रुके बिना झुके खूब मेहनत करता हूँ
जब तक प्राण निकल न जाये
तब तक रोज मेहनत करता हूँ
केवल दो रोटी के लिए मेहनत करता हूँ
शारीर को कभी आराम नहीं दे पता हूँ
ऐसे ही काम करते - करते थक कर मर जाता हूँ
लेखक -मुकेश कुमार
कक्षा - ९ अपना घर , कानपुर
सब दिन एक समान नहीं होते..मेहनत और इमानदारी से पढ़ाई भी करते रहो..अच्छे दिन आयेंगे. शुभकामनाएँ.
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