गुरुवार, 27 जनवरी 2011

कविता : शाबाशी दी मास्टर साहब ने

शाबाशी दी मास्टर साहब ने

मास्टर साहब आये पूछा कहाँ गए थे ?
मैने कहा जाने कब से यहीं पर बैठे थे ।
न जाने आप का कोई पता नहीं ,
डर के मारे आपका काम किये बगैर मैं सोया नहीं ....
काम हुआ जैसे ही पूरा ,
खाया मैनें चार- पांच खीरा ....
खीरा था या उसमें थे कंकड़ ,
आगें वाले मेरे दांत टूटे धड़-धड ....
सोया नहीं मैं रात भर ,
क्योंकि दांत दर्द हो रहे थे बड़ी जोर ....
मास्टर साहब बोले इसमें मेरा क्या कसूर ,
काम किया तुमने पूरा इसलिए तुम हो बेकसूर ....
काम किया जब पूरा हमने ,
तब शाबाशी दी मास्टर शाहब ने .....

लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :
अपना घर

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