बुधवार, 28 जुलाई 2010

कविता :महंगाई का राज

महंगाई का राज

महंगाई का राज है भैया ।
कहाँ गयी है सरकार भैया ॥
परवल,कुंदरू के सामने ।
फेल है गेंहू ,चावल और दाल ॥
महंगाई का राज है भैया ।
टमाटर को न पूँछों भैया ॥
पहुँच गया है पैतालीस के पार ।
यह है मंहगाई का हाल ॥
तो क्या होगा इस देश का हाल ।
मंहगाई का राज है भैया ॥

लेखक :सागर कुमार
कक्षा :
अपना घर

3 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चों के लिए काव्य सृजन अच्छी बात है...लेकिन जो कोई भी सज्जन इस ब्लॉग को 'डील' कर रहें हैं.. उनकी यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे उन रचनाओं को सम्पादित करें..अन्यथा बच्चों ने लिखा और आपने उसे ब्लॉग पर चढ़ा दिया..ऐसा करोगे तो मैं भी कहूँगा कि ....बड़ा बुरा हाल है... .

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