शनिवार, 3 जुलाई 2010

कविता : मौसम हुआ सुहाना

मौसम हुआ सुहाना

अब हुआ सुहाना मौसम
पानी गिर रहा है रिमझिम-रिमझिम
बूदें लगती गालों पर
खुशियाँ आती सब के चेहरों पर
हरियाली आती खेतों पर
हरी-हरी घास उगी है मेड़ों पर
अब खेतों में होगी खेती
अब मैं हूँ ठंठी यह धरती कहती
अब हल चल रहे हैं खेतों पर
और बैल टहल रहे हैं अब खेतों पर
यह मन सबका कैसा है
क्योंकि इस पानी मैं नहाने को तरसा है

लेखक :आशीष कुमार
कक्षा :
अपना घर

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