गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

कविता: बैगन के है नसीब फूटे

बैगन के है नसीब फूटे

बैगन जी कि दिल्ली गई बरात,
पहुचते पहुचते हो गई आधी रात ।
मूली जी दुल्हन बनी थी ,
मन ही मन वो सोच रही थी ।
कब आयेंगे दुल्हे राजा ,
उन्हें खिलाऊंगी हलुआ ताजा।
तब तक आ गए दुल्हे राजा ,
मूली ने देख रुकवाया बाजा।
क्योकि दूल्हा थे बैगन काला ,
मूली बोली मै नहीं डालूंगी माला ।
दूल्हा काला दुल्हन गोरी ,
टूट गई शादी कि डोरी ।
बैगन बोला हमारे नसीब है क्यों फूटे,
मूली झट से बोली क्योकि तुम हो काले कलूटे।


लेखक: आदित्य कुमार, कक्षा ७, अपना घर

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