मंगलवार, 17 नवंबर 2009

कविता: पड़ोसी के घर से निकली रे गइया....

पड़ोसी के घर से निकली रे गइया

दईया हो दईया सुन मोरे भइया,
पड़ोसी के घर से निकली रे गइया....
काली - काली सी उसकी है बछिया,
भाग रही है गलियाँ रे गलियाँ....
जिसके डर से भागे रे सारे,
भोले - भोले बच्चें रे प्यारे....
दईया हो दईया सुन मोरे भइया,
कोई तो पकड़े जाके रे भइया....
सब कोई डर के घर में छुप जाए,
पास उसके अब कोई जाए....
आओ रे बच्चों सब मिल ही जाओ,
मिल के सभी खूब शोर मचाओं....
डर के भागेगी काली रे बछियाँ,
फ़िर हम खेलेंगे गलियाँ रे गलियाँ....
दईया हो दईया सुन मोरे भइया,
पड़ोसी के घर से निकली रे गइया....

लेखक: अशोक कुमार, कक्षा ७, अपना घर ...




1 टिप्पणी:

  1. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मेरे इस ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com
    मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! आपने बहुत ही सुंदर और शानदार रचना लिखा है जो काबिले तारीफ है!

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