गुरुवार, 17 सितंबर 2009

कविता: गुरु जी की मार

गुरु जी की मार

गुरु जी हमारे कितने प्यारे,
हरदम पाठ पढाते प्यारे...
हम भी पढ़ते जाते सारे,
याद हमको होते प्यारे...
कक्षा में जब गुरु जी बोले,
पाठ सुनाओ बेटा भोले...
हम तो भइया गए भूल,
सोचा क्यो आए स्कूल...
गुरु जी को गुस्सा आया,
खूब पड़े फ़िर मुझको रूल...
याद गई मेरी नानी,
ख़त्म हुई अब मेरी कहानी...

लेखक :चंदन कुमार, कक्षा ४, अपना घर

3 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी कविता, शायद अनुभव के आधार पर।

    अध्यापक से छात्र के डर और मार का रिश्ता अब बदल जाना चहिये।

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  2. Bhai meree to sabhee guruon se yahee apeel hai ki kakshaa men marna ,peetana ,dhamkana band karen ----varna aise hee kavitayen likhee jaatee rahengee.
    Hemant Kumar

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