एक डाल पर बैठी चिड़िया ।
खाके पान की पुड़िया॥
तब आकर बोली एक बुढ़िया।
तुम क्या कर रही हो चिड़िया॥
बोली गुस्से में आकर चिड़िया ।
खाए बैठी हूँ पान की पुड़िया॥
प्यार से कहते मुझको गुड़िया।
दिखता नही क्या तुझको बुढ़िया॥
सुनकर चिड़िया की ऐठी बतियाँ।
गुस्से से फ़िर भर गई बुढ़िया ॥
बोली ले जाउंगी पकड़ के घर में।
तुझसे खाना बनावऊँगी चूल्हे में।।
चिड़िया बोली आसमान में उड़ जाउंगी।
पकड़ न मुझको तुम पाओगी।।
मुहँ बनके रह जाओगी।
खाली हाथ ही घर जाओगी॥
खाके पान की पुड़िया॥
तब आकर बोली एक बुढ़िया।
तुम क्या कर रही हो चिड़िया॥
बोली गुस्से में आकर चिड़िया ।
खाए बैठी हूँ पान की पुड़िया॥
प्यार से कहते मुझको गुड़िया।
दिखता नही क्या तुझको बुढ़िया॥
सुनकर चिड़िया की ऐठी बतियाँ।
गुस्से से फ़िर भर गई बुढ़िया ॥
बोली ले जाउंगी पकड़ के घर में।
तुझसे खाना बनावऊँगी चूल्हे में।।
चिड़िया बोली आसमान में उड़ जाउंगी।
पकड़ न मुझको तुम पाओगी।।
मुहँ बनके रह जाओगी।
खाली हाथ ही घर जाओगी॥
कविता: आदित्य कुमार, कक्षा ६, अपना घर
पेंटिंग: लवकुश कुमार, कक्षा ५, अपना घर
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएं