सोमवार, 11 मई 2009

कविता: मच्छर

मच्छर
देखो मच्छर की टांगे चार।
काटे तो हम हो जाए बीमार॥
फैले बीमारी मलेरिया हैजा।
रोटी खाने में न आए मजा॥
पड़े रहे फ़िर घर के अन्दर।
काम न करने जा पाए बाहर॥
मच्छर गंदे पानी में रहते।
रुके पानी में हरदम पलते॥
घूम - घूम को रात को काटे।
बीमारी एक दूजे को बांटे॥
पानी साफ हमेशा रखना।
सब बच्चों का यही है कहना॥
जो मच्छर को दूर भगाओगे।
फ़िर तन मन अच्छा पावोगे॥

कविता
: मुकेश कुमार , कक्षा ७, अपना घर
पेंटिंग: आदित्य कुमार, कक्षा ६, अपना घर

7 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी कविता है प्रोत्साहन देने के लिये अच्छा कदम ।

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  2. बहुत सुंदर रचनाएँ!
    मुकेश और आदित्य को मेरा आशीष!

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  3. बेटे, मच्छर के छह टांगें होती हैं। स्कूल में नहीं पढ़ा है? वैसे कविता अच्छी है।

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  4. आप की अच्छी कोशिश है बच्चो के साथ काम करने की।
    और कविता बहुत सुंदर है बच्चो की कोशिश मे जो बचपना नज़र आता है वो दिखाई दिया... :-)

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  6. Mukesh aur Aditya badiya kosis ... aur machher ke jitne bhi tang ho... hai to bimari phailane wala... khub likho aur paint karo...

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