एक छोटी सी मख्खी
दिन भर रहती घर के अन्दर
घर के अन्दर जब भी आ जाती
घर के दरबाजे खुले पा जाती
एक छोटी सी मख्खी..
दिन भर रहती घर के अन्दर
घर के अन्दर तब - तब आती
घर के अन्दर जब गन्दगी रहती
खाने में मुंह लगा देती हैं
सबको को बिमार बना देती हैं
अपने आप को बचा कर भाग जाती
फ़िर न किसी से पकड़ में आती
वापस उस घर में शक्ल दिखाती नहीं
क्योंकि वह पहचान में आती नहीं
सब एक जैसी लगती हैं ।
एक छोटी सी मख्खी
दिन भर रहती घर के अन्दर ....
दिन भर रहती घर के अन्दर
घर के अन्दर जब भी आ जाती
घर के दरबाजे खुले पा जाती
एक छोटी सी मख्खी..
दिन भर रहती घर के अन्दर
घर के अन्दर तब - तब आती
घर के अन्दर जब गन्दगी रहती
खाने में मुंह लगा देती हैं
सबको को बिमार बना देती हैं
अपने आप को बचा कर भाग जाती
फ़िर न किसी से पकड़ में आती
वापस उस घर में शक्ल दिखाती नहीं
क्योंकि वह पहचान में आती नहीं
सब एक जैसी लगती हैं ।
एक छोटी सी मख्खी
दिन भर रहती घर के अन्दर ....
कविता:- अशोक कुमार , कक्षा ६ , अपना घर
पेंटिंग:- चंदन कुमार, कक्षा ३ अपना घर
सुंदर पेंटिंग है......बधाई पोस्ट भी सही बात कह रही है
जवाब देंहटाएंआप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
जवाब देंहटाएंचिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
www.abhivyakti.tk
आपने बहुत अच्छी कविता लिखी है ...पेंटिंग भी अच्छी है
जवाब देंहटाएंआपका दिल और दिमाग दोनों सुन्दर है इस्लिये आपने अच्छा लिखा और सुन्दर चित्र बनाया
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