मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

कविता:- नेता जी का मुंह में मच्छर

नेता जी के मुंह में मच्छर
आज सुनी मैंने गजब ख़बर।
नेता के मुंह में अटक गया मच्छर॥
नेता जी भागे खांसते - खांसते।
दौड़े पतली गली के रस्ते॥
पहुँच गए डाक्टर घसीटे के पास।
उसने सोचा दिन है मेरा खास॥
तभी नेता जी टप से तब बोले
जल्दी से अपना मुंह खोले॥
मुंह के अन्दर मेरे मच्छर।
फंस गया है वो उसके अन्दर॥
पकड़ा डाक्टर ने चिमटे से मच्छर।
जोर लगाया उसने कसकर॥
निकल गया फ़िर गले से मच्छर।
फ़िर भी मच्छर रहा सिकंदर॥
डंक टूट गया गले के अन्दर
नेता जी फ़िर बन गए बन्दर॥
खांस - खांस कर हुए बेहाल।
याद आया उनको ननिहाल॥
आदित्य पाण्डेय , अपना घर, कक्षा ६



4 टिप्‍पणियां:

  1. आदित्य बाबू, बहुत मजेदार कविता है। डंक तो निकलना ही नही चाहिए। कम से कम जीवन भर साथ रहना चाहिए।
    पर यह वर्ड वेरीफिकेशन हटा दो वरना लोग टिप्पणियाँ नहीं करेंगे।

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  2. बहुत अच्छी कविता है ....बच्चों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए .
    हेमंत कुमार

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