शनिवार, 18 अप्रैल 2009

कहानी:- मेहनत का फल

मेहनत का फल
एक बार की बात है। एक गाँव में एक किसान रहता था ।वह बड़ा दयालु किस्म का आदमी था वह रोज जंगल में जाता और लकड़ी काटकर लाता और उससे जो बीस पच्चीस रूपये मिल जाते उसी से अपना गुजर बसर करता वह किसान के पास एक विस्वा खेत था वह बेचारा इतना गरीब था कि वह अपना चप्पल जूता भी नही खरीद सकता फिर वह उसके पास थोड़ी बहुत जमीन थी वह भी बंजर पड़ी थी । बंजर के कारण उसके खेत खेलिहान सब सूख गये थे। उसके पास पानी का कोई साधन नही था तो बेचारा वह क्या करता। उसके पास टूटी -फूटी झोपड़ी थी वह उसी में रहता था। एक दिन वह फिर जंगल में गया और उसने कडी़ मेहनत करके लकड़ी काट कर लाया, फ़िर वह बाजार गया और उसने दस हजार की लकड़ी बेच दी फिर उसने दो बैल और दो गाय खरीदी सात हजार रूपये की और खुद के लिए १००० रुपये के बढ़िया कपड़े लाया, और अपने गाय बैलों के लिये भूसा चारा आदि के लिये २००० रुपये रख लिए। वह खुशी से रहने लगा, तभी एक दिन बहुत जोर बारिश हुई, बारिश के कारण नदी, तालाब, खेत खलिहान सब भर गये, अब किसान को बहुत प्रशन्नता हुई। वह बैलों को लेकर अपना थोड़ी बहुत जो खेती थी उसे जोतने लगा, फिर अब उसके पास धन नही था, फिर वह लकड़ी काटने गया। उससे जो पैसा मिला उससे वह अपने खेत के लिये बीज ले आया, फिर वह उसे बो दिया और उसके पास जो गाय थी, वह उसको चारा खिलाता कुछ दिन बाद गाय को एक बछड़ा पैदा हुआ, और अब वह दूध बेचने लगा, फिर उसने सोंचा कि गांव में कोई दूध नही लेगा, और उसने सोचा दूध को कैसे बेचा जाये, उसके पास साइकिल तो नही थी। उसने गेहूं को काटा और उसे पछोर कर बाजार में बेचने चला गया, और उसे बेचकर अपने लिये एक साईकिल लाया। अब वह रोज शहर मे जाकर दूध बेचने लगा, दूध बेचने पर उसे ढेर सारे पैसे मिले, उस पैसों से उसने अपनी टूटी फूटी झोपड़ी बनवा ली। अब वह सुख व शांति पूर्वक रहने लगा। इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है की इस दुनिया मे जो मनुष्य मेहनत करता है वही सफल होता है।
आदित्य कुमार, कक्षा 6
अपना घर,
बी-135/8, प्रधान गेट, नानकारी,
आई0आई0टी0, कानपुर-16

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