"मेरे गुरु जी"
गुरु बस तेरा ही एक सहारा था ,
राहो का वो एक सहारा था ,
चाँदो का वो एक तारा था ,
कठिन परिस्थित्यों में भी मुस्कुराना था।
सबके साथ रहना भी था ,
अपनी मन की बात को बताता था ,
समय बिताने के लिए मन को बहलाता था।
कभी - कभी तो खुद से बात कर लिया करता था ,
न जाने परिंदा कैसा था वो दुखी में भी ख़ुशी नजर आती थी।
रातो को चाँद को देखा करता था ,
सुबह सूरज की पूजा करता था ,
अपनी मन की बात को बता था ,
गजरता हुआ वह एक सहारा था।
रहो के लिए रह था वो ,
जीवन जीने के लिए वो एक चाह था वो।
कवि: गोपाल II, कक्षा: 6th,
अपना घर।
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