"मेरा बचपन"
वो भी क्या यादे थी ,
बचपन भी दोस्ती यारी के बीच गुजारी थी ,
शैतानी तो करते ही साथ में पढ़ते भी थे।
ख़ुशी तो मिलती थी साथ खेला करते थे
एक तरफ दोस्तों का प्यार तो दूसरी तरफ माँ और पापा का प्यार ,
सबके साथ बैठ कर खाना खाना ,
हाथ बहार जाकर धोना तो एक बहाना था ,
बिन बताए घर के बाहर तो जाना ही था ,
वो भी क्या यादे थी।
घूमना तो एक बहाना था ,
असली बात तो यह थी की दोस्तों के ,
साथ कही बेर तोड़ने जाना था।
कवि: शिवा कुमार, कक्षा: 9th,
अपना घर।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें