शुक्रवार, 21 नवंबर 2025

कविता: "मेरा बचपन"

"मेरा बचपन"
वो भी क्या यादे थी ,
बचपन भी दोस्ती यारी के बीच गुजारी थी ,
शैतानी तो करते ही साथ में पढ़ते भी थे। 
ख़ुशी तो मिलती थी साथ खेला करते थे 
एक तरफ दोस्तों का प्यार तो दूसरी तरफ माँ और पापा का प्यार ,
सबके साथ बैठ कर खाना खाना , 
हाथ बहार जाकर धोना तो एक बहाना था ,
बिन बताए घर के बाहर तो जाना ही था ,
वो भी क्या यादे थी। 
घूमना तो एक बहाना था , 
असली बात तो यह थी की दोस्तों के ,
 साथ कही बेर तोड़ने जाना था। 
कवि: शिवा कुमार, कक्षा: 9th, 
अपना घर। 

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