मंगलवार, 6 अगस्त 2024

कविता: "सपना "

 "सपना "
एक सपना था जो कभी अपना था ,
वह एक जिंदगी थी जो कभी अपनी थी | 
चाह रहा था उंचाईओं को छूना ,
वह तो बस एक सपना था जो कभी अपना था | 
ये खूबसूरत सी दुनिया को ,
चाह रहा था अपनाना | 
वो मंजिल का रास्ता ,
जो रहा था एक मोड़ पे | 
वह तो बस एक सपना था ,जो कभी अपना था| 
ये छोटी सी काली परछाई ,
चाह रही थी साथ अकेला | 
ये दुनिया को बदलने का जुल्म सहने को ,
वह तो बस एक सपना था जो कभी अपना था | 
कवि :मंगल कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

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