रविवार, 18 अगस्त 2024

कविता :"किताबे "

"किताबे "
ये  बेजुवा किताबे बहुत कुछ कह जाती है ,
हर एक शब्दों पर बहुत कुछ बना जाती है | 
समुद्र से गहरा ज्ञान हमे दे जाती है ,
ये बेजुवा किताबे बहुत कुछ कह जाती है | 
बुझे हुए दीप को जला जाती है ,
हर एक भटके को नई राह दिखाती है | 
 जो इस जिंदगी को हार कर बैठ जाता है ,
उसे जिंदगी का राह दिखती है | 
ये बेजुवा किताबे बहुत कुछ कह जाती है 
कवि :मंगल कुमार ,कक्षा :8th 
अपना घर 

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