गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

कविता:"खेल "

"खेल " 
खेल के मैदान में ,
हार -जीत का फासला बना रहता है | 
जो मंजिल बुना  है तूने ,
उस कोशिश में लगा रहना पड़ता है | 
आत्मा और अपने ये धीरज रखो ,
संघर्ष का रास्ता बहुत लम्बी होती है| 
उस पर कदम से  कदम मिलकर चलना उचित है ,
तूने तो अब बुनियाद रचना शुरू किया है | 
अब तो दूर सागर पार जाओगे ,
खेल के मैदान में | 
हर -जीत का फासला बना रहता है,
कवि :नीरू कुमार , कक्षा :8th 
अपना घर 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें