रविवार, 21 मई 2023

कविता :"मुसाफिरों की यात्रा "

"मुसाफिरों की यात्रा "
 चल मुसाफिर  तू  चल | 
अकेला ही तू चल,
न किसी के साथ चल|  
और न किसी की बात सुन, 
बस तू चलता ही चल | 
डगर तेरी सुन सान होगी, 
और कुछ रस्ते अनजान होगी|  
तुझको उसपर चलना  ही होगा, 
हिम्मत बांधकर अपने पथ पर चल| 
चल मुसाफिर तू चल,
न कोई तुम्हे पूछने वाला होगा|  
और न ही कोई टोकने वाला ,
तुम्हारा हिम्मत ही तुम्हारा साथी होगा|  
और हौसला तुम्हारा गाड़ी ,
चल मुसाफिर तू चल|  
कवि :नितीश कुमार ,कक्षा :12th
अपना घर  

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