"मेरा चाह"
मेरा चाह है कि मैं जेई क्लियर करू |
पर समझ न आए इसके लिए क्या करू ,
चक्कर खा जाता है इतना बड़ा सिलेबस देखकर |
सोच में पड़ जाता हूँ उन सब को फेककर ,
टाइम मैनेज करना हो जाता है मुश्किल |
सोच में पड़ जाता है क्या कर पाऊंगा लक्ष्य हाशिल ,
घण्टों विताना पड़ता है पढ़ने में |
खूब दिमाग लगाना पड़ता है कुछ करने में ,
कविता : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12th
अपना घर
युवा मन खोज पे निकला है। शुभकामना।
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