गुरुवार, 13 जनवरी 2022

कविता : "चमकता सूरज "

"चमकता सूरज "
चमकता हुआ सूरज | 
आज डूबने को है ,
कल यही सूरज | 
एक नया सवेरा लाने को है ,
कौन जानता है  | 
 जो आज हम सूरज देख रहे है ,
कल शायद हम न देखे | 
लोग सोचते  है ,
आज जो सूरज देखा  है | 
वो फिर कल निकलेगा ,
लोग सोच में रहते है | 
एक नई उम्मीद की ,
एक नई चमकती हुई रोशनी  की | 
शायद हम आज कुछ कर जाए ,
कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 11th  

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