सोमवार, 14 जून 2021

कविता: "मुझे लग रहा था ,ढडी "

"मुझे लग रही  थी ,ठण्डी  "

मुझे लग रही  थी  ,ठण्डी शाम को | 

मैने इकट्ठा किया कुछ घास ,

सब मिलकर आग जलाए  एक साथ | 

ठण्डी से नहीं कर रहा था , हाथ पाँव काम,

मैने आस -पास से लकड़ी का किया इंतजाम | 

आग पे बैठे -बैठे  हो गया ,

शाम के आधी रात |

अभी भी मै क्यूँ बैठा हूँ आग के पास,

कोहरा गिर रहा था मेरे आस -पास | 

सब मिलकर आग जलाए एक साथ ,

कवि : अमित कुमार  , कक्षा :7 

अपना घर

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