मंगलवार, 1 जून 2021

कविता: "बहती हवा "

"बहती हवा "

न जाने कहाँ से चली आई | 

मन्द -मन्द बहकर वातावरण में सफाई,

कभी भवन्डर तो कभी पूर्वाई | 

इस जगत में बहती हवा आई ,

साल के हर महीने में | 

फूल और बाग बगीचों में,

फसलों के कलियों में | 

लगता हैं कोई जादू समाई ,

इस जगत में बहती हवा आई | 

जब की मौंसम बेईमान है ,

बारिश का कोई ठिकाना न हो | 

फिर भी राहत सबको दिलाई ,

इस जगत में बहती हवा आई | 

कवि :प्रांजुल कुमार , कक्षा : 11 

अपना घर

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