शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

कविता :" वो सुनहरी धुप "

"सुबह की  वह सुनहरी धुप "

सुबह की वह  सुनहरी धुप ,

जो बिना बोले चमक आती है |

सही समय नहीं होने पर ,

आपने आप गयाब हो जाती है |

न लगती न चुभती है ,

मन के भीतर तक है | 

सभी दिमाग के तार को ,

फिर से एक्टिव करजाती है |

ये सुनहरी धुप ,

जिसके अनेक है रूप  | 

लेकिन मन को  मोह जाती है ,

सुबह की वह सुनहरी धुप |  

कविता :  प्रांजुल कुमार , कक्षा : 12th , अपना घर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें