गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

कविता:- आज मौसम जो उभरा

"आज मौसम जो उभरा"
आज मौसम जो उभरा। 
सदियों से इंतजार था।।
जो शायद अब नहीं बुरा। 
मौसम तो ढ़लते उभरते रहते है।।
कल हो या परसों या हो पूरा साल। 
अगर वो मौसम चला गया।।
तो दुबारा आने लगेगा पूरा साल। 
या फिर क्या तुम्हें  पता है।।
या फिर मुझे क्या पता है।
इसका न आने का मन हो पूरा साल।।
ये मौसम जो उभरा आज।
शायद सदियों से था इंतजार।।
 
 कविः - विक्रम कुमार ,कक्षा -10th ,अपना घर, कानपुर,
 

कवि परिचय : यह कविता विक्रम के द्वारा लिखी गई है।  विक्रम बिहार के नवादा जिले के रहने वाले हैं। विक्रम को कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है। और वह अपनी प्यारी -प्यारी कविताओं एकत्रित कर उन्हें एक किताब में प्रकाशित करवाना चाहता है।  विक्रम एक रेलवे डिपार्टमेंट में काम करना चाहते हैं।

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