सोमवार, 11 जनवरी 2021

कविता:-छोटे से सपने थे किसी समय

 "छोटे से सपने थे किसी समय"
छोटे से सपने थे किसी समय। 
नाजुक से हाथ थे जिस समय।। 
मुश्किलों का बवण्डर था। 
बस खुशियों का समुन्दर था।।
रबर के चपल थे।
बालो में कंघी न थी।।
कोई दिशा निर्धारित न थी।
जीवन का कोई आधार न था ।।
बस था तो जुनून। 
सोच थी दायरा का जुलूस।। 
जिसने बना दिया मायूश। 
आज सपने बड़े है इस समय में।।
मजबूत कंघा है इस समय। 
बस देरी है मुसीबतों को सुलझाने की।।
खुशियों को और बढ़ाने की।   
   कविः -प्रांजुल कुमार ,कक्षा -11th ,अपना घर ,कानपुर ,

कवि परिचय :- यह हैं प्रांजुल जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं और कानपुर के अपना घर नामक संस्था में रहकर अपनी पढाई कर रहे हैं।  प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है।  प्रांजुल पढ़कर एक इंजीनियर बनना चाहते हैं और फिर इंजीनियर बनकर समाज के अच्छे कामों में हाथ बटाना चाहता हैं। प्रांजुल को बच्चों को पढ़ाना बहुत अच्छा लगता है।

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