सोमवार, 4 जनवरी 2021

कविता:- बहती हवाएँ कुछ कहती हैं

"बहती हवाएँ कुछ कहती हैं"
बहती हवाएँ कुछ कहती हैं।
बहते वक्त किसी की नहीं सुनती हैं।।  
कभी सर-सर तो कभी भर-भर।
कभी ठण्डी तो कभी बंजर।।
ठण्ड में तो सिकुड़ ही जाती।
गर्मी में अपने को फैलाती।।
बसन्त में मन्द-मन्द बहती। 
गर्मी में अपने को लू है कहती।।  
सुबह-शाम शान्त है रहती।
दोपहर में अपने को कुछ और कहती।।
  कविः -प्रांजुल कुमार ,कक्षा -11th ,अपना घर ,कानपुर ,

कवि परिचय :- यह हैं प्रांजुल जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं और कानपुर के अपना घर नामक संस्था में रहकर अपनी पढाई कर रहे हैं।  प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है।  प्रांजुल पढ़कर एक इंजीनियर बनना चाहते हैं और फिर इंजीनियर बनकर समाज के अच्छे कामों में हाथ बटाना चाहता हैं। प्रांजुल को बच्चों को पढ़ाना बहुत अच्छा लगता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें