गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

कविता:- चला जाऊँ छोड़ के ये जहाँ

"चला जाऊँ छोड़ के ये जहाँ"
चला जाऊँ छोड़ के ये जहाँ।
क्युकि  प्रदूषण ही है यहाँ ।।
मनुष्य भी हो गया है पागल। 
 खाने को नहीं है घर में चावल।। 
कचरा से भरा ये संसार।
लोगो की मौत हो रही भरमार ।।
तरह तरह के बीमारी ये लाते।
बच्चो को बीमार कर जाते ।।
ना बचेगा हम में से कोई। 
तब भगवन भी रोई।।
 चला जाऊँ छोड़ के ये जहाँ। 
कविः- कुलदीप कुमार, कक्षा -9th, अपना घर, कानपुर,
 

कवि परिचय : यह हैं कुलदीप कुमार जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं।  कुलदीप पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं।  कुलदीप एक नेवी ऑफिसर बनना चाहते हैं।  कुलदीप अपनी कविताओं से लोगों को जागरूक करने की कोशिश करते हैं।  इनको  क्रिकेट खेलना पसंद है



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