बुधवार, 25 नवंबर 2020

कविता:- सोचता हूँ कि मै बड़ा गया हूँ

  "सोचता हूँ कि मै बड़ा गया हूँ"
सोचता हूँ कि मै बड़ा हो गया हूँ।
कहाँ गिरता था अब खड़ा हो गया हूँ।।
अपने कामों को खुद करने लगा हूँ।
जो होता है उसे परखने लगा हूँ।। 
लगता है कि मै बड़ा हो गया हूँ। 
अब अपने और अपनो के बारे में सोचने लगा हूँ।।
बेकार दौर का भी लुफ्त उठाने लगा हूँ।
अपने में खुद को महसूस करने लगा हूँ।।
लगता है मै बड़ा हो रहा हूँ। 
कविः- प्रांजुल कुमार, कक्षा -11th, अपना घर, कानपुर,


कवि परिचय :- यह हैं प्रांजुल जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं और कानपुर के अपना घर नामक संस्था में रहकर अपनी पढाई कर रहे हैं।  प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है।  प्रांजुल पढ़कर एक इंजीनियर बनना चाहते हैं और फिर इंजीनियर बनकर समाज के अच्छे कामों में हाथ बटाना चाहता हैं। प्रांजुल को बच्चों को पढ़ाना बहुत अच्छा लगता है।
 

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