शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

कविता:- फिर भी फूल मुस्कुराता है

"फिर भी फूल मुस्कुराता है" 
 
जितने भी कांटे हो पेड़ों में।
गिर जाते पत्ते हवा के अंधेड़ो में।।
पानी के लिए तरस जाये।
बिना छाँव के धूप में ही रह जाये।।
फिर भी फूल मुस्कुराते है।
पेड़ों की डालियाँ चर-चराने लगे।।
कोयल बैठ गुनगुनाने लगे।
 पत्तियाँ पेड़ को छोड़ जाने लगे।।
 पेड़ फिर भी भँवरों को बुलाता है।
फूल हमेश मुस्कुराता है।।
मीठी शहद से लेकर शहीद तक जाता है।
बिना रोये पैरों तले कुचला जाता है।।
कभी दो जोड़ो को माला बन मिलाता है।
कभी कचरे के ढेर में सिमट जाता है ।।
फिर भी फूल मुस्कुराता  है। 

कविः-प्रांजुल कुमार, कक्षा - 11th, अपना घर, कानपुर,
 
 


कवि परिचय :- यह हैं प्रांजुल जो की छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं और कानपुर के अपना घर नामक संस्था में रहकर अपनी पढाई कर रहे हैं।  प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है।  प्रांजुल पढ़कर एक इंजीनियर बनना चाहते हैं और फिर इंजीनियर बनकर समाज के अच्छे कामों में हाथ बटाना चाहता हैं। प्रांजुल को बच्चों को पढ़ाना बहुत अच्छा लगता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें