" सोते -सोते सोच रहा था "
सोते -सोते सोच रहा था ,
मै कुछ अलग और खास |
क्या कभी खेल सकूँगा किकेट ,
अब नहीं रहा जरा भी विशवास |
जिंदगी यूही चलती रहेगी ,
चाहे कोरोना हो जाए आर- पार |
लगता है जरूर छिड जाएगी ,
इस कोरोना वारयस के खिलाफ जंग |
कवि : समीर कुमार ,कक्षा : 10th , अपना घर
फिलहाल तो कोरोना विश्व पर एक छात्र राज करने को आतुर है
जवाब देंहटाएंबढ़िया बाल रचना
सुन्दर
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