मंगलवार, 22 सितंबर 2020

कविता : सोते -सोते सोच रहा था

 " सोते  -सोते सोच रहा था "

सोते -सोते सोच रहा था ,

मै कुछ अलग और खास | 

क्या कभी खेल सकूँगा किकेट ,

अब नहीं रहा जरा भी विशवास | 

जिंदगी यूही चलती रहेगी ,

चाहे कोरोना हो जाए आर- पार | 

लगता है जरूर छिड जाएगी ,

इस कोरोना वारयस के खिलाफ जंग | 


कवि  : समीर कुमार  ,कक्षा : 10th  , अपना घर

 

 

 


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