शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

कविता : धैर्यवान बगुला

" धैर्यवान बगुला "

मैं बगुला के भाँति तालाब किनारे बैठा,
अब सब्र का फल छूटा जाए 
भूख से बेचैनी और भी बढ़ती जाए | 
मेरी वह भूख यूँ देख -देख भड़कती जाए,
सतर्कता के बाद भी शिकार नज़र न आए | 
संघर्ष की सीमा अभी भी बनी है,
हर एक शिकार मेरे लिए अजनबी है | 
घंटों बैठ तालाब को निहारूं,
चलते शिकार को आँखों में उतारूँ |
 कहीं एक टांग तो कहीं गर्दन ऊँची,
कहीं शिकार तो कहीं नजरें नीचें | 
कितना सब्र के बाद कुछ पाऊँ,
कुछ नहीं तो खाली हाँथ ही मलता जाऊँ | 

कवि : राज कुमार , कक्षा : 11th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता राज के द्वारा लिखी गई है जो की हमीरपुर के रहने वाले हैं | राज एक बहुत अच्छे कविकार है और अच्छी -अच्छी कवितायेँ लिखते हैं | राज एक समाज सेवक बनना चाहतें हैं |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें