रविवार, 12 अप्रैल 2020

कविता : " व्हाट्सएप्प "

 " व्हाट्सएप्प "

जिंदगी बन गई है व्हाट्सअप,
हर लोग करते रहते गपसप |
घर बैठे रहते आराम से,
बेफिक्र और बेकाम से |
मम्मी जब काम बताती हैं,
हो जाएगा कहकर भूल जाते हैं |
हम बैठे अनजान दोस्तों को भेजते मैसेज,
कोई कुछ बोलता तो हम कहते ये है न्यू
खेलना कूदना भूल गए,
आराम की जिंदगी कबूल गए |
 मोबाइल चलाने का बहाना ढूढ़ते हैं,
जब न मिले तो मुँह लटकाकर घूमते हैं
कमाल  मोबाइल का जहाँ,
दुनियाँ ख़त्म हो रही है वहाँ |

कविता : देवराज कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता देवराज के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के रहने वाले हैं | देवराज ने यह कविता एक व्हाट्सअप पर लिखी है की कैसे आजकल लोग व्हाट्सअप के दीवाने बनते जा रहे हैं | देवराज को कवितायेँ  पसंद है | उम्मीद है और भी अच्छी कवितायेँ लिखेंगें |


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें