सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

कविता : आज़ाद परिन्दें हैं हम

" आज़ाद परिन्दें हैं हम "

आज़ाद परिन्दें हैं हम 
बूँद -बूँद से बढ़ते हैं हम 
हर पर खयाल है आता 
घर परिवार की याद सताता 
 छोड़ा है हमने जो ये सब 
खिलाना होगा कीचड़ में कमल 
हर करतब हमें है सीखना 
आगे चलकर इसे है बरतना 
आज़ाद परिन्दें हैं हम 
बूँद -बूँद से बढ़ते हैं हम 
उम्मीद की किरण हैं हम 
 हमसे खिले हैं फूल के रंग 
आगे बढ़ते रहेगे हम 
कभी न तोड़ेगें हम दम 
आज़ाद परिन्दें हैं हम 

कवि : कुलदीप कुमार , कक्षा : 8th , अपना घर 
कवि परिचय : यह कविता कुलदीप के द्वारा लिखी है जो की छत्तीसगढ़ के रहने  कुलदीप को कवितायें लिखने का बहुत शौक है | कुलदीप को गणित में बहुत रूचि है और इतिहास को समझना बहुत अच्छा लगता है | एक अच्छे इंसान के साथ एक नेवी ऑफिसर बनना चाहते हैं | 

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