शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

कविता : ओस

" ओस "

हम लोग नहीं जानते,
की भगवन की क्या मर्जी | 
कभी हिलाया तो कभी कपकपाए, 
क्या सर्दी है क्या सर्दी है | 
क्या किया जाए इससे निपटने के लिए, 
नहीं मन करता पानी से सटने में | 
आग जलने को हम मजबूर हैं,
सर्दी इतना क्यों मगरूर है | 
आग भी इसमें बेअसर है, 
जिधर भी देखो कोहरा आधर है | 
बात एक दम ठोस है,
घांसों पर पड़ी रहती ओस है | 

कवि : अखिलेश कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता अखिलेश के द्वारा लिखी गई है जो की एक बहुत अच्छे कविकार हैं | अखिलेश को कवितायेँ लिखना बहुत पसंद है और अभी तक बहुत सी कवितायेँ लिख चुके हैं | अखिलेश पढ़लिखकर एक नेवी ऑफिसर बनना चाहते हैं और उसके लिखे बहुत मेहनत कर रहे हैं | 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें