शुक्रवार, 8 नवंबर 2019

कविता : प्रदूषण

" प्रदूषण "

अँधेरा सब तरफ छाने लगा,
दूषित होने लगी है हवा | 
कहीं है ज़्यादा कहीं है कम,
अभी भी नहीं समझें है हम | 
हिस्सेदारी इसमें सबकी है,
आज की नहीं 
बीते हुए कल की है | 
ये ले जा रही है तबाही की ओर,
चारों तरफ मच जाया शोर | 
अब तो इसे रोकना होगा, 
आने वाले पीढ़ी के लिए कुछ सोचना होगा | 

कवि अखिलेश कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर 

कवि परिचय : यह कविता अखिलेश के द्वारा लिखी गई है जिसका शीर्षक " प्रदूषण " है | इस कविता में अखिलेश जी नई लिखा है की प्रदूषण दर पे दर बढ़ता ही जा रहा है अगर अभी भी इसको नहीं रोकने की कोशिश करेंगे तो आने वाली पीढ़ी पर बहुत ही बुरा असर पडेगा | 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें