शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

कविता : फूल बन जाऊँ

" फूल बन जाऊँ "

मन करता है फूल बन जाऊँ,
सुन्दर सी महक फैलाऊँ |
महान व्यक्तियों के लिए,
मैं सुन्दर सी माला बन जाऊँ |
एक घर के लिए मैं साया बन जाऊँ,
मैं उन लोगों के लिए सहारा बन जाऊँ |
क्यारियों और बगीचों के लिए,
सुन्दर सा सजावट जाऊँ |
मंदिर , मस्जिद दोनों के लिए के,
रंग बिरंगे फूल बन जाऊँ |
मन करता है फूल बन जाऊँ,
सुन्दर सी महक फैलाऊँ |

कवि : सार्थक कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर

कवि परिचय : यह कविता सार्थक के द्वारा लिखी गई है जो की बिहार के नवादा जिले के निवासी हैं | सार्थक को क्रिकेट खेलना का बहुत शौक है | सार्थक पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं | साथक एक आर्मी बनना चाहते हैं | एक फूल बनने की कल्पना की है |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें