सोमवार, 8 जुलाई 2019

कविता : बहती हवाएँ

" बहती हवाएँ "

चलती हवाएँ कुछ कह रहीं हैं,
मानो वह मंद मंद बह रहीं हैं |
फूल - पत्तों को छूकर,
बंजर जमीं को फूँककर |
वह सारी सौन्दर्य को बढ़ा रहीं हैं,
चलती हवाएँ कुछ कह रहीं हैं |
पसीने की बून्द को सुखाती है,
पूरे बदन में ठंडक पहुंचाती है,
कितना सफर करके आती है |
रूकती नहीं वह बहतीही जाती है | |

नाम : प्रांजुल कुमार , कक्षा : 10th , अपना घर



कवि परिचय : यह हैं प्रांजुल जिन्होंने यह कविता लिखी है | प्रांजुल मूल रूप से छत्तीसगढ़ के निवासी हैं और कानपूर के एक "अपना घर" संस्था में रहकर कक्षा 10 की पढ़ाई कर रहे हैं | प्रांजुल को कवितायेँ लिखने का बहुत शौक है और वह कविता लिखते भी हैं |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें