शनिवार, 29 जून 2019

कविता : चिड़िया

 " चिड़िया "

चिड़िया जब उड़ना शुरू करती है,
तो वह उड़ ही जाती है |
चाहे हो पानी चाहे हो हवा,
वो सभी को पार करते जाती है |
गिरती है फिर भी उड़ती है,
गिर कर ही वह सीख पाती है |
आखिर वह मंजिल तक पहुँच ही जाती है,
तब वह अपने को चिड़िया कह पाती है |   
चिड़िया जब उड़ना शुरू करती है,
तो वह उड़ ही जाती है |

नाम : समीर कुमार , कक्षा : 9th , अपना घर



कवि परिचय : यह कविता समीर के द्वारा लिखी गई है जो प्रयागराज के निवासी है | समीर अपना घर नामक संस्था में रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं |समीर को कवितायेँ लिखने का बहुत | समीर को खेलना बहुत अच्छा लगता है | समीर को कहानियाँ पढ़ना बहुत अच्छा लगता है | समीर एक संगीतकार भी है |

2 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30 -06-2019) को "पीड़ा का अर्थशास्त्र" (चर्चा अंक- 3382) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। सदा ऊंचाइयों को छूने की लगन रखो समीर शुभाशीष।

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